सुखी परिवार के लिए रखे इन बातो क्या ध्यान

कभी कबार कुछ समज़दार पति पत्नी अपने परिवार को ठीक तो कलर लेते है पर कभी खुश नहीं क्र पाता। उसके लिए समझ से ज्यादा समर्पण जरूरी होता है। चूंकि उम्र का एक लंबा समय दोनों ने अलग-अलग बिताया होता है और पति-पत्नी बनने के बाद इनकी पहली मुलाकात व्यक्तित्व से ही होती है, इसलिए सारी समझ इसी को बचाने में लगा दी जाती है।

जीवनसाथी का अस्तित्व टटोलने के लिए केवल निकटता काम नहीं आती। समर्पण भाव भी पैदा करना पड़ता है, जिसकेे लिए अहंकार छोड़ना जरूरी है। व्यक्तित्व गतिशील भी होता है और परिवर्तनशील भी। जैसे-जैसे किसी विवाहित जोड़े की उम्र बढ़ती है, उनके व्यक्तित्व में भी परिवर्तन आने लगता है। बहुत से लोग जो पहले गंभीर थे, अब मस्ताने हो गए और वैवाहिक जीवन की शुरुआत मस्ती से करने वाले थक गए, उदास हो गए।

इसलिए जीवनसाथी के अस्तित्व को टटोलना हो तो थोड़ा रुकना पड़ेगा। यहां रुकने से मतलब है उसके शरीर से आगे बढ़कर उसकी आत्मा को स्पर्श करना। जिन क्षणों में जरा भी जीवनसाथी की आत्मा महसूस की जाती है, वो क्षण जिंदगी के सबसे अच्छे क्षण होते है।